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Thursday 5 March 2015

जलते हुए ख़्वाबों को नींद कैसे सुलाए


जब इन्सान किसी मुश्किल में मुब्तला होता है , तब उसे सारे जहाँ में हर तरफ़ मुश्किलें ही नज़र आती हैं.सब कुछ ग़लत ही लगता है. वाक़ई में ऐसा होता नहीं है. दर-असल मुश्किल दौर में उसका हर चीज़ को देखने का नज़रिया बदल जाता है. सच है सारा खेल नज़रिए का ही होता है. आप और हम हालात के शिकार तभी महसूस करेंगे अपने-आप को जब नज़रिया ऐसा होगा हमारा, कि सारी मुश्किलात, सारी परेशानी, सब ग़लती और सब ज़्यादती हमारे ही साथ हो रही है. सारी दुनिया ख़ुशहाल है, ख़ुश-क़िस्मत है, सिर्फ़ हम ही बदक़िस्मत हैं.जब अंदेशे और ग़लतफ़हमी पाल कर बैठा रहेगा इंसान तो हासिल कुछ भी नहीं होगा. मुश्किलात के हल ढूंढे , लहरों के ख़िलाफ़ चलने की कौशिश करे सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने की हिम्मत रखे. अपनी कमी और ग़लती ढूंढे, उन्हें पहचाने, उन्हें माने और फिर उन्हें दूर करने की कौशिश करे. सबसे ज़्यादा ज़रूरी है ख़ुद पर एतमाद रखना. अपने आप को यक़ीन दिलाए कि वह सब-कुछ कर सकता है. तब तो वह हर मन्ज़िल पा सकता है.

सुलगती आँखों से झरते है

ख़्वाबों के सर्द से साए

जलते हुए ख़्वाबों को नींद कैसे सुलाए

पाया था जिसे मुश्किल से या रब

मोड़ ऐसा आने नहीं पाए

ख़ुमारी के आलम को जो मिटा जाए

जिनकी क़िस्मत में जलना है

ऐसे ख़्वाबों को कोई बुझा कैसे जाए

पलकें झपकती सी ये ज़िन्दगी

ख़्वाब की मदहोशी मिटा ना जाए

ढूंड कर लाए हैं बड़ी जद्दोजहद से

अपने आपको ख़ुद से,

फ़िर खोने से हम ख़ुद को कैसे बचाएँ

रूहानी सी किसी ख़ुशबू सा

महकता है जज़्बा दिलों में

ओस की बूंदों सा ये कहीं सूख ना जाए

जो ख़ुद अपनी बर्बादी करने चले

उनको तबाही से ख़ुदा कैसे बचाए

दहकते दिल के प्याले में बसते

मक़सद के टिमटिमाते अक्स हैं

जलते-बुझते मक़सद को दहलीज़ कैसे पlर कराएँ 

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