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Thursday 1 January 2015

परछाईयां तो झूट बोलती हैं

happy new year

मंज़र बदलते देर नहीं लगती .वक़्त बदल भी जाता है, देखते देखते . आज एक साल जुड़   गया इस सदी की उम्र मे .अफ़साना और बढ़ गया इतिहास के जिगर मेकल तक जो था आज,वही  आज अलविदा कह कर चला गया. ज़िन्दगी के कई अंदाज़ सिखा गया. कभी हँसना कभी हँसाना सिखा गया . राज़ कई दफना गया ,कई  राज़  खुलेआम  सरेआम करता गया.  ज़िदगी की नदी मे से पानी कम हो गया, मोजों के साथ बहते हुए आज  ये एहसास हो गया वक़्त का दामन बड़ा सही, उम्र का आंचल छोटा सही, एक अंदाज़ है इसे थमने  का, जो  सीख  गया, वो जीत गया वक्त के ही शागिर्द बनना होगा. इस से इल्म को सीखना होगा .                                             
                                                           
 परछाईयां तो बोलती हैं झूट                                              
  जो होती नहीं है हकीकत                                                      
  आँखों तक,उसे बना कर सच                                                     
  पहुंचाती हैं दिल की तह तक                     
  जब सच्चाइयों को होती ज़रूरत

 झुठला देतीं हैं ये तब हकीकत

 छोड़ देती हैं साथ, बिना आवाज़ 

 क्यों एतबार कर जाता, इन्साँ हर बार

 क्यों छला जाता  इनसे है यूँ  बारबार 

 ऐ ख़ुदा कुछ तो दे बता,

 कब तक झूट की परछाइयाँ यूँ रहेंगी

 कब तक  सच्चाइयाँ सिसकती रहेंगी

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